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Tuesday, June 14, 2011

जब जब बारिस होती है !

गावं मुझे याद आता है !
जब जब बारिस होती है, 

वो सोंधी मिटटी की खुशबु 
मन को हर्षित कर जाता था !
अब यहाँ इन पत्थर की दीवारों में
दम घुटने सा लगता है 
जब जब बारिस होती है ! 
वो छत की मुंडेरों से बहता हुआ पानी,
जब मेरे तन पे गिरता था 
मन में कई भाव जगा देते थे  
गावं मुझे याद आता है !
एक गरम चाय की प्याली होती थी,
सर्दी से नीले हुए हाथों  में 
माँ  की ममता  याद आती है 
जब जब बारिस होती है !
वो सावन का महिना याद आता है 
जब आम के बगीचों में झूले लगा करते थे
रिमझिम रिमझिम बारिस में,
पिंकी  साथ में हुआ करती थी !
कहाँ गए वो दिन  
जब हम गावं में रहा करते  थे !
शहरों की इन तंग गलियों  में
दिल ढूंढता है गुलमोहर के पेड़ों को
तो एक बेचैन सी ख़ामोशी नजर आती है 
जब जब बारिस होती है
गावं  मुझे  याद आता है..!!!

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