स्वप्न में
मन के सादे कागज पर
एक रात किसी ने
ईशारों से लिख दिया अ....
और अकारण
शुरू हो गया वह
और एक अनमनापन बना रहने लगा
फिर उस अनमनेपन को दूर करने को
एक दिन आई खुशी
और आजू-बाजू कई कारण
खडें कर दिए
कारणों ने इस अनमनेपन को पांव दे दिए
और वह लगा डग भरने , चलने और
और अखीर में उड़ने
अब वह उड़ता चला जाता वहां कहीं भी
जिधर का ईशारा करता अ...
और पाता कि यह दुनिया तो
इसी अकारण प्यार से चल रही है
और उसे पहली बार प्यारी लगी यह
कि उसे पता ही नही था इसकी बाबत
जबकि तमाम उम्र वह
इसी के बारे में कलम घिसता रहा था
यह सोच-सोच कर उसे
खुद पर हंसी आई
और अपनी बोली में उसने
खुद को ही कहा - भक... बुद्धू...
भक...
अ ने दुहराया उसे
और बिहंसता जाकर झूल गया
उसके कंधों से
अब दोनों ने मिलकर कहा - भक...
और ठठाकर हंस पड़े
भक...
दूर दो सितारे चमक उठे...
दूर इक शहर में जब कोई भटकता बादल मेरी जलती हुई बस्ती की तरफ़ जाएगा कितनी हसरत से उसे देखेंगी प्यासी आँखें और वो वक़्त की मानिंद गुज़र जाएगा..!!
Welcome
Welcome to my world...!!
Tuesday, July 20, 2010
दर्द
पूरी दुनियां में
जैसे उस वक्त रात थी
वह अपनी दोनों
खाली कलाइयों को
एकटक देखती है
और फ़िर सामने पड़ी
चूड़ियों को ....
तभी
वक्त आहिस्ता से
दरवाज़ा खोल बाहर आया
कहने लगा ....
नचनिया सिर्फ़ भरे हुए
बटुवे को देखतीं हैं
कलाइयों को नहीं...
दर्द ने करवट बदली
और आंखों के रस्ते
चुपचाप ....
बाहर चला गया ....!!
जैसे उस वक्त रात थी
वह अपनी दोनों
खाली कलाइयों को
एकटक देखती है
और फ़िर सामने पड़ी
चूड़ियों को ....
तभी
वक्त आहिस्ता से
दरवाज़ा खोल बाहर आया
कहने लगा ....
नचनिया सिर्फ़ भरे हुए
बटुवे को देखतीं हैं
कलाइयों को नहीं...
दर्द ने करवट बदली
और आंखों के रस्ते
चुपचाप ....
बाहर चला गया ....!!
इक लड़की पागल दीवानी,...!!!!
इक लड़की पागल दीवानी, गुमसुम चुप-चुप सी रहती थी
बारिश सा शोर न था उसमें, सागर की तरह वो बहती थी
कोई उस को पढ़ न पाया, न कोई उसको समझा तब
छोटी उदास आँखें उस की, न जाने क्या-क्या कहती थी
शख़्स जो अक़्सर दिखता था, उस दिल के झरोखे में
दर्द कई वो देता था, रखता था उसको धोखे में
जितने पल रुकता था आकर, वो उस में सिमटी रहती थी
छोटी उदास आँखें उस की, न जाने क्या-क्या कहती थी
इक दिन ऐसा भी आया, वो आया पर दर नहीं खुला
दरवाज़े पर हँसता था जो, इक चेहरा उस को नहीं मिला
आँसू के हर्फ़ वहाँ थे, और था वफ़ा का किस्सा भी
तब जान गये आख़िर, सब कैसे वो टूटी, कहाँ मिटी
समझा तब लोगों ने उसको, कैसे वो ताने सहती थी
छोटी उदास आँखें उस की, न जाने क्या-क्या कहती थी
बाद उसके ख़त भी मिले, जिनमें कई प्यार की बातें थी
सौगातें थी पाक दुआ की, भेजी चाँदनी रातें थी
लिखा था उसने, सम्हल के रहना, इतना भी मत गुस्सा करना
अब और कोई न सीखेगा, तुम से जीना, तुम पर मरना
अब वो पागल लड़की नहीं रही, जो तुम को खूब समझती थी
हर गुस्से को हर चुप को, आसानी से जो पढ़ती थी
समझा वो भी अब जाकर, क्या उसकी आँखें कहती थी
था प्यार बला का उससे ही, वो जिसके ताने सहती थी
इक लड़की पागल दीवानी, गुमसुम चुप-चुप सी रहती थी
बारिश सा शोर न था उसमें, सागर की तरह वो बहती थी
कोई उस को पढ़ न पाया, न कोई उसको समझा तब
छोटी उदास आँखें उस की, न जाने क्या-क्या कहती थी
शख़्स जो अक़्सर दिखता था, उस दिल के झरोखे में
दर्द कई वो देता था, रखता था उसको धोखे में
जितने पल रुकता था आकर, वो उस में सिमटी रहती थी
छोटी उदास आँखें उस की, न जाने क्या-क्या कहती थी
इक दिन ऐसा भी आया, वो आया पर दर नहीं खुला
दरवाज़े पर हँसता था जो, इक चेहरा उस को नहीं मिला
आँसू के हर्फ़ वहाँ थे, और था वफ़ा का किस्सा भी
तब जान गये आख़िर, सब कैसे वो टूटी, कहाँ मिटी
समझा तब लोगों ने उसको, कैसे वो ताने सहती थी
छोटी उदास आँखें उस की, न जाने क्या-क्या कहती थी
बाद उसके ख़त भी मिले, जिनमें कई प्यार की बातें थी
सौगातें थी पाक दुआ की, भेजी चाँदनी रातें थी
लिखा था उसने, सम्हल के रहना, इतना भी मत गुस्सा करना
अब और कोई न सीखेगा, तुम से जीना, तुम पर मरना
अब वो पागल लड़की नहीं रही, जो तुम को खूब समझती थी
हर गुस्से को हर चुप को, आसानी से जो पढ़ती थी
समझा वो भी अब जाकर, क्या उसकी आँखें कहती थी
था प्यार बला का उससे ही, वो जिसके ताने सहती थी
इक लड़की पागल दीवानी, गुमसुम चुप-चुप सी रहती थी
अजनबी देश है यह / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है
कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है
जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई,
नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है
होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त
द्वार मेरा कोई उस वक्त खटखटाता है
शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा
कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है
देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं,
फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है
हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में
रास्ता है कि कहीं और चला जाता है
कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है
जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई,
नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है
होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त
द्वार मेरा कोई उस वक्त खटखटाता है
शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा
कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है
देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं,
फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है
हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में
रास्ता है कि कहीं और चला जाता है
तुम्हें देखे ज़माने हो गए हैं...!!!
भरी है धूप ही धूप
आँखों में
लगता है
सब कुछ उजला उजला
तुम्हें देखे ज़माने हो गए हैं
आँखों में
लगता है
सब कुछ उजला उजला
तुम्हें देखे ज़माने हो गए हैं
प्यार-- चाँद-सा ही होता है
जाने कितने लम्हे बीते
जाने कितने साल हुए हैं
तुम से बिछड़े
जाने कितने
समझौतों के दाग़ लगे हैं
रूह पे' मेरी
जाने क्या-क्या सोचा मैंने
खोया, पाया
खोया मैंने
ज़ख्मों के जंगल पर लेकिन
आज
अभी तक हरियाली है
तुम ने ठीक कहा था
उस दिन -
प्यार-- चाँद-सा ही होता है
और नहीं बढ़ने पाता तो
धीरे-धीरे
ख़ुद ही
घटने लग जाता है....!!!!
जाने कितने साल हुए हैं
तुम से बिछड़े
जाने कितने
समझौतों के दाग़ लगे हैं
रूह पे' मेरी
जाने क्या-क्या सोचा मैंने
खोया, पाया
खोया मैंने
ज़ख्मों के जंगल पर लेकिन
आज
अभी तक हरियाली है
तुम ने ठीक कहा था
उस दिन -
प्यार-- चाँद-सा ही होता है
और नहीं बढ़ने पाता तो
धीरे-धीरे
ख़ुद ही
घटने लग जाता है....!!!!
Monday, July 19, 2010
क्यूँ ज़माने पे ऐतबार करूँ ,..!!!!
क्यूँ ज़माने पे ऐतबार करूँ
अपनी आँखों को अश्कबार करूँ
सिर्फ़ ख्वाबों पे ऐतबार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
मेरी रग-रग में है महक तेरी
मेरे चेहरे पे है चमक तेरी
मेरी आवाज़ में खनक तेरी
ज़र्रे - ज़र्रे में है धनक तेरी
क्यूँ न मैं तुझपे दिल निसार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
तुझपे कुरबां करूँ हयात मेरी
तुझसे रोशन है कायनात मेरी
बिन तेरे क्या है फिर बिसात मेरी
जाने कब होगी तुझसे बात मेरी
कब तलक दिल को बेक़रार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
मेरी आँखों की रोशनी तू है
मेरी साँसों की ताजगी तू है
मेरी रातों की चांदनी तू है
मेरी जां तू है, ज़िन्दगी तू है
हर घड़ी तेरा इन्तिज़ार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूं
तू ही उल्फ़त है, तू ही चाहत है
अब फ़क़त तेरी ही ज़रूरत है
हसरतों की ये एक हसरत है
इश्क़ से बढ़के भी इबादत है?
तुझको ख्वाबों से क्यूँ फरार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
अपनी आँखों को अश्कबार करूँ
सिर्फ़ ख्वाबों पे ऐतबार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
मेरी रग-रग में है महक तेरी
मेरे चेहरे पे है चमक तेरी
मेरी आवाज़ में खनक तेरी
ज़र्रे - ज़र्रे में है धनक तेरी
क्यूँ न मैं तुझपे दिल निसार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
तुझपे कुरबां करूँ हयात मेरी
तुझसे रोशन है कायनात मेरी
बिन तेरे क्या है फिर बिसात मेरी
जाने कब होगी तुझसे बात मेरी
कब तलक दिल को बेक़रार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
मेरी आँखों की रोशनी तू है
मेरी साँसों की ताजगी तू है
मेरी रातों की चांदनी तू है
मेरी जां तू है, ज़िन्दगी तू है
हर घड़ी तेरा इन्तिज़ार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूं
तू ही उल्फ़त है, तू ही चाहत है
अब फ़क़त तेरी ही ज़रूरत है
हसरतों की ये एक हसरत है
इश्क़ से बढ़के भी इबादत है?
तुझको ख्वाबों से क्यूँ फरार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
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